जीवन में कई बार कोई छोटी मोटी घटना घट जाती है जो हमारे लिए अपमान या
बेइज्जती का सबब बन जाती है, लेकिन सोचिये क्या एक छोटी सी घटना हमें
विचलित करके रख देगी और हम स्वयं पर नियंत्रण खो बैठेंगे ? बिल्कुल नहीं
... यदि हम कहते हैं कि हां ये हमारा बहुत बड़ा अपमान है और मैं इसे कदापि
बर्दाश्त नहीं कर सकता तो हममें धैर्य या सहिष्णुता नाम की कोई चीज है ही
नहीं ... हम इस स्थिति को स्वीकार कर स्वयं खुद को अपमानित करने की
स्वीकृति दूसरों को दे रहे हैं ... वास्तव में हमारी सहमति के बिना कोई हमारा अपमान नहीं कर सकता .............
किसी घटना पर हमारी जो तत्क्षण प्रतिक्रिया होती है वही हमारे अपमान का कारण बनती है ... हर स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया मत कीजिए ... ऊंट किस करवट बैठता है इसको देखने का इंतजार कीजिए ... हो सकता है कुछ देर में परिस्थितियां ही बदल जाएं ... आज ही कोई कयामत का दिन तो नहीं कि आज ही सारे फैसले हो जाने चाहिए ... कई बार कुछ गलतफहमियां भी हो जाती हैं , अत: उचित अवसर की प्रतीक्षा करनी चाहिए जब बात साफ की जा सके ... एक दूसरे का गिरेबान पकड़ लेने से तो कभी समस्या का समाधान नहीं हो सकता ... धैर्य और शालीनता तो हर हाल में बनाए रखनी चाहिए ............
निरी प्रशंसा और सम्मान से व्यक्ति अहंकारी होकर अपने उचित मार्ग या कर्तव्य पथ से विचलित हो सकता है ... प्रशंसा तो विष के समान है जिसे मात्र औषधि के रूप में अत्यंत अल्पमात्रा में ही लेना चाहिये ... अधिक मात्रा घातक होती है ... विरोध , निंदा या अपमान एक कटु औषधि होते हुए भी अच्छी है क्योंकि ये रोगोपचारक है , प्रशंसा से उत्पन्न अहंकार रूपी रोग को नष्ट करने में सक्षम है .............
समझदार व्यक्ति को किसी भी घटना या आरोप पर प्रतिक्रिया करने से पूर्व उसका भली भांति विश्लेषण कर लेना चाहिये ... विश्लेषण से पता चल जाएगा कि ये आरोप अथवा तथ्य सही हैं या गलत ... यदि आरोप सही है तो उसे स्वीकार कर सुधार करना चाहिये क्योंकि इसी में हमारा आंतरिक विकास अंतर्निहित है ... यदि मिथ्या दोषारोपण किया गया है तो भी विचलित होने की क्या बात है ?
आप किसी को बदल नहीं सकते ... बदलना तो ख़ुद को ही पड़ेगा ... स्वयं को परिवर्तित कर सको तो जमाना न केवल बदलना प्रतीत होगा अपितु बदलेगा भी लेकिन कहीं न कहीं से तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी ... धैर्य अथवा सहिष्णुता का विकास करना भी एक अच्छा परिवर्तन और एक अच्छी शुरुआत है ... विरोध कम से कम हो तो मानव की ऊर्जा की बचत ही है और इस ऊर्जा का उपयोग अन्य रचनात्मक कार्यों अथवा अन्य किसी सकारात्मक दिशा में किया जा सकेगा ...
किसी घटना पर हमारी जो तत्क्षण प्रतिक्रिया होती है वही हमारे अपमान का कारण बनती है ... हर स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया मत कीजिए ... ऊंट किस करवट बैठता है इसको देखने का इंतजार कीजिए ... हो सकता है कुछ देर में परिस्थितियां ही बदल जाएं ... आज ही कोई कयामत का दिन तो नहीं कि आज ही सारे फैसले हो जाने चाहिए ... कई बार कुछ गलतफहमियां भी हो जाती हैं , अत: उचित अवसर की प्रतीक्षा करनी चाहिए जब बात साफ की जा सके ... एक दूसरे का गिरेबान पकड़ लेने से तो कभी समस्या का समाधान नहीं हो सकता ... धैर्य और शालीनता तो हर हाल में बनाए रखनी चाहिए ............
निरी प्रशंसा और सम्मान से व्यक्ति अहंकारी होकर अपने उचित मार्ग या कर्तव्य पथ से विचलित हो सकता है ... प्रशंसा तो विष के समान है जिसे मात्र औषधि के रूप में अत्यंत अल्पमात्रा में ही लेना चाहिये ... अधिक मात्रा घातक होती है ... विरोध , निंदा या अपमान एक कटु औषधि होते हुए भी अच्छी है क्योंकि ये रोगोपचारक है , प्रशंसा से उत्पन्न अहंकार रूपी रोग को नष्ट करने में सक्षम है .............
समझदार व्यक्ति को किसी भी घटना या आरोप पर प्रतिक्रिया करने से पूर्व उसका भली भांति विश्लेषण कर लेना चाहिये ... विश्लेषण से पता चल जाएगा कि ये आरोप अथवा तथ्य सही हैं या गलत ... यदि आरोप सही है तो उसे स्वीकार कर सुधार करना चाहिये क्योंकि इसी में हमारा आंतरिक विकास अंतर्निहित है ... यदि मिथ्या दोषारोपण किया गया है तो भी विचलित होने की क्या बात है ?
आप किसी को बदल नहीं सकते ... बदलना तो ख़ुद को ही पड़ेगा ... स्वयं को परिवर्तित कर सको तो जमाना न केवल बदलना प्रतीत होगा अपितु बदलेगा भी लेकिन कहीं न कहीं से तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी ... धैर्य अथवा सहिष्णुता का विकास करना भी एक अच्छा परिवर्तन और एक अच्छी शुरुआत है ... विरोध कम से कम हो तो मानव की ऊर्जा की बचत ही है और इस ऊर्जा का उपयोग अन्य रचनात्मक कार्यों अथवा अन्य किसी सकारात्मक दिशा में किया जा सकेगा ...
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