अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी महिलाओं को हार्दिक शुभकामनाएं ......
लगातार कई सालों महिला दिवस हम मनाते आ रहे हैं लेकिन आज एक बार फिर हम महिलाओं के अस्तित्व को पहचानने की कोशिश करते हैं ... क्या सिर्फ आज के ही दिन महिला सम्मान की बातें करने से महिला सम्मान की सुरक्षा हो जाती है ? या ये सिर्फ एक ख़ाना पूर्ति ही है ? जरूरत इस बात की है कि महिलाएं ख़ुद अपने अस्तित्व को पहचाने .........
इस देश में नारी को श्रद्धा , देवी , अबला जैसे संबोधनों से संबोधित करने की पंरपरा अत्यंत प्राचीन है ... नारी के साथ इस प्रकार के संबोधन या विशेषण जोड़कर या तो उसे देवी मानकर पूजा जाता है या फिर अबला मानकर उसे सिर्फ भोग्या या विलास की वस्तु मानी जाती रही है ... लेकिन इस बात को भुला दिया जाता है कि नारी का एक रूप शक्ति का भी रूप है , जिसका स्मरण हम औपचारिकता वश कभी कभी ही किया जाता रहा है ... नारी मातृ सत्ता का नाम है जो हमें जन्म देकर पालती पोसती और इस योग्य बनाती है कि हम जीवन में कुछ महत्तवपूर्ण कार्य कर सके ... फिर आज तो महिलाएं पुरूषों के समान अधिकार सक्षम होकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा औऱ कार्यक्षमता का लोहा मनवा रही है ...........
आजादी के इतने सालों के बाद भी महिलाओं की स्थिति में कोई ज्यादा सुधार नहीं हुआ है … 21 वी सदी में भी अभी तक महिलाओं को ना तो आर्थिक आजादी मिल सकी और ना ही सामाजिक ... कभी एक बात आपने गौर की है कि बारह पंद्रह साल की किसी लडकी को घर से अकेले जाने में कई दफा सोचना पडता है ... कई बार तो उसके साथ आठ नौं साल के अबोध बच्चों के साथ उन्हें घर से जाने की इज़ाजत दी जाती है यह जानते हुए भी रास्तें में होने वाली किसी घटना में वह मासूम चाह के भी कुछ नहीं कर पायेगा … रही बात घर के भीतर की तो आज घरेलु महिलाओं को इस बात की इज़ाजत नहीं वे अपने मन से कुछ बना सके आज भी महिलाएं खाना बनाने से पहले यह पूछती हैं कि आज क्या बनना है ? क्या खाना चाहते हैं घर के मुखिया … महिला आरक्षण विधेयक आज भी लंबे समय से हाशिये पर पड़ा है ... नारियों की सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता देखकर तो दुखद रूप से स्वीकार करना पडेगा कि देश का और कथित प्रगतिशील पुरूष समाज अभी तक नारी के प्रति अपना परंपरागत दृष्टिकोण पूर्णतया बदल नहीं पाया है ... अवसर पाकर उसकी कोमलता से अनुचित लाभ उठाने की दिशा में सचेष्ट रहता है .............
आवश्यकता इस बात की है कि अपनी इस मानसिकता से छुटकारा पाकर वह नारी को निर्भय और मुक्त भाव से काम करने का अवसर प्रदान करें ...........
“ नारी तुम केवल श्रद्धा हो , विश्वास रजत नग पग तल में ..
पीयूष स्रोत सी बहा करो , जीवन के सुंदर समतल में “......
लगातार कई सालों महिला दिवस हम मनाते आ रहे हैं लेकिन आज एक बार फिर हम महिलाओं के अस्तित्व को पहचानने की कोशिश करते हैं ... क्या सिर्फ आज के ही दिन महिला सम्मान की बातें करने से महिला सम्मान की सुरक्षा हो जाती है ? या ये सिर्फ एक ख़ाना पूर्ति ही है ? जरूरत इस बात की है कि महिलाएं ख़ुद अपने अस्तित्व को पहचाने .........
इस देश में नारी को श्रद्धा , देवी , अबला जैसे संबोधनों से संबोधित करने की पंरपरा अत्यंत प्राचीन है ... नारी के साथ इस प्रकार के संबोधन या विशेषण जोड़कर या तो उसे देवी मानकर पूजा जाता है या फिर अबला मानकर उसे सिर्फ भोग्या या विलास की वस्तु मानी जाती रही है ... लेकिन इस बात को भुला दिया जाता है कि नारी का एक रूप शक्ति का भी रूप है , जिसका स्मरण हम औपचारिकता वश कभी कभी ही किया जाता रहा है ... नारी मातृ सत्ता का नाम है जो हमें जन्म देकर पालती पोसती और इस योग्य बनाती है कि हम जीवन में कुछ महत्तवपूर्ण कार्य कर सके ... फिर आज तो महिलाएं पुरूषों के समान अधिकार सक्षम होकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा औऱ कार्यक्षमता का लोहा मनवा रही है ...........
आजादी के इतने सालों के बाद भी महिलाओं की स्थिति में कोई ज्यादा सुधार नहीं हुआ है … 21 वी सदी में भी अभी तक महिलाओं को ना तो आर्थिक आजादी मिल सकी और ना ही सामाजिक ... कभी एक बात आपने गौर की है कि बारह पंद्रह साल की किसी लडकी को घर से अकेले जाने में कई दफा सोचना पडता है ... कई बार तो उसके साथ आठ नौं साल के अबोध बच्चों के साथ उन्हें घर से जाने की इज़ाजत दी जाती है यह जानते हुए भी रास्तें में होने वाली किसी घटना में वह मासूम चाह के भी कुछ नहीं कर पायेगा … रही बात घर के भीतर की तो आज घरेलु महिलाओं को इस बात की इज़ाजत नहीं वे अपने मन से कुछ बना सके आज भी महिलाएं खाना बनाने से पहले यह पूछती हैं कि आज क्या बनना है ? क्या खाना चाहते हैं घर के मुखिया … महिला आरक्षण विधेयक आज भी लंबे समय से हाशिये पर पड़ा है ... नारियों की सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता देखकर तो दुखद रूप से स्वीकार करना पडेगा कि देश का और कथित प्रगतिशील पुरूष समाज अभी तक नारी के प्रति अपना परंपरागत दृष्टिकोण पूर्णतया बदल नहीं पाया है ... अवसर पाकर उसकी कोमलता से अनुचित लाभ उठाने की दिशा में सचेष्ट रहता है .............
आवश्यकता इस बात की है कि अपनी इस मानसिकता से छुटकारा पाकर वह नारी को निर्भय और मुक्त भाव से काम करने का अवसर प्रदान करें ...........
“ नारी तुम केवल श्रद्धा हो , विश्वास रजत नग पग तल में ..
पीयूष स्रोत सी बहा करो , जीवन के सुंदर समतल में “......
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