माँगा क्या हमने , कुछ नहीं ……. नहीं कुछ इस दुनिया से ।
जाते-जाते दिल ने समझा ……… बहुत समझा इस दुनिया को ,
पाया क्या हमने , कुछ नहीं ……… नहीं कुछ इस दुनिया से ।
जाते -जाते फिर से तोला ………. बहुत तोला इस दुनिया को ,
पाया खुद को भारी , बहुत भारी ………. इस दुनिया में ।
जाते-जाते आँखें बन गईं ………… पत्थर सी इस दुनिया में ,
खोया क्या हमने , क्या था पाया ……. यही सोचा इस दुनिया में ।
जाते-जाते लफ्ज़ बोले , कुछ ना बोले ……… उसके आगे ,
हर लफ्ज़ में एक कसक थी , बहुत कसक थी ………उसे समझा के ।
जाते -जाते उसने टोका , बहुत रोका ………. हमें आके ,
दे गए फिर भी , दगा उसको ………. उसको दगा ये दामन चुरा के ।
जाते-जाते दुनिया समझे , बहुत समझे अब ………… हमें पाके ,
जाना अब तय था , तो फिर कैसे ……. कैसे रूकती भला ये साँसें ?
जाते-जाते लोग पूछें , क्या दिया उनको ……… उनको कसम निभा के ,
बोला पढ़ लेना , समझ लेना ………मेरे दर्द को अंदर सज़ा के ।
जाते -जाते दफन कर दीं सब तमन्नाएँ ……….तमन्नाएँ सब उन्हें पाके ,
थे न अब हम कुछ अधूरे , न थे वो पूरे ………. हमसे नज़रें मिला के ।
जाते-जाते नम थी आँखें , पलकें थी भारी ………… उसके सपने सज़ा के ,
टूटे सब सपने , छूटे अपने ……. जब रँगे उसके रंग में खुद को लाके ।
जाते-जाते बन गया फ़साना , एक फ़साना ……… उसका और मेरा यहाँ आके ,
हर फ़साने को उसने पढ़ा दिल से , बहुत दिल से ………मेरे करीब आके ।
जाते -जाते हमने सोचा , कुछ सोचा कि दें उसको ……….उसकी वफ़ा का सिलसिला मुस्कुराके ,
उसने चूमा , हमें चूमा अपने होठों से ………. हमारे लबों को तब पास आके के ।
जाते-जाते वो पूछ बैठे कि अब बचा क्या बाकी , जिसे देने से रह गए हम पछताते ,
हमने तब दे दी उसे अपनी उम्र , बाकी की उम्र ……. एक और फैसला सुना के ॥
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