Saturday, 3 January 2015

रंग बदलते देखा है..

मैंने हर रोज जमाने को रंग बदलते देखा है,
उम्र के साथ जिंदगी को ढंग बदलते देखा है !
वो जो चलते थे तो शेर के चलने का होता था गुमान,
उनको भी पाँव उठाने के लिए सहारे को तरसते देखा है !
जिनकी नजरों की चमक देख सहम जाते थे लोग,
उन्ही नजरों को बरसात की तरह रोते देखा है !
जिनके हाथों के जरा से इशारे से टूट जाते थे पत्थर,
उन्ही हाथों को पत्तों की तरह थर थर काँपते देखा है !
जिनकी आवाज़ से कभी बिजली के कड़कने का होता था भरम,
उनके होठों पर भी जबरन चुप्पी का ताला लगा देखा है !
ये जवानी, ये ताकत, ये दौलत सब कुदरत की इनायत है,
इनके रहते हुए भी इंसान को बेजान हुआ देखा है !
अपने आज पर इतना ना इतराना मेरे यारों,
वक्त की धारा में अच्छे अच्छों को मजबूर हुआ देखा है !
कर सको तो किसी को खुश करो, दुःख देते तो हजारों को देखा है...!!!

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